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जब हम आज की अत्याधुनिक तकनीकों और विज्ञान की बात करते हैं, तो अक्सर यह भूल जाते हैं कि हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले ही ज्ञान, दर्शन और विज्ञान के ऐसे बीज बो दिए थे, जिनकी गूंज आज भी सुनाई देती है। प्राचीन ज्ञान केवल ग्रंथों में सीमित नहीं है, यह हमारे संस्कारों, रीति-रिवाजों, भाषा, वास्तुकला और जीवनशैली में समाया हुआ है।
भारतीय सभ्यता में वेद और उपनिषद ज्ञान के प्रमुख स्रोत रहे हैं। वेदों में जहां यज्ञ, चिकित्सा, खगोल, गणित और ध्वनि विज्ञान की झलक मिलती है, वहीं उपनिषद आत्मा, ब्रह्म और अस्तित्व के रहस्यों पर गहन प्रकाश डालते हैं। "तत्त्वमसि", "अहं ब्रह्मास्मि" जैसे वाक्य महज दर्शन नहीं, बल्कि आत्मबोध की गहराई को दर्शाते हैं।
चरक और सुश्रुत जैसे ऋषियों ने चिकित्सा के ऐसे ग्रंथ रचे जो आज भी आधुनिक चिकित्सा जगत को आश्चर्यचकित करते हैं। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का विवरण मिलता है, जबकि चरक संहिता में आयु, आहार, विहार और औषधियों का अद्भुत समन्वय दिखता है।
आर्यभट्ट, भास्कराचार्य और ब्रह्मगुप्त जैसे विद्वानों ने शून्य की खोज, बीजगणित और खगोल विज्ञान में जो योगदान दिया, वह आज की गणितीय संरचना की नींव है। प्राचीन मंदिरों की रचना में भी खगोलीय ज्ञान और गणित का अद्भुत प्रयोग देखा जा सकता है।
पतंजलि के योगसूत्र केवल शरीर को स्वस्थ रखने का उपाय नहीं, बल्कि मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने की विधि है। ध्यान और प्राणायाम से जुड़ा यह ज्ञान अब पूरे विश्व में लोकप्रिय हो चुका है।
भारत की प्राचीन वास्तुकला केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि ऊर्जा, दिशा और प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की प्रणाली है। कोणार्क, खजुराहो और मीनाक्षी मंदिर जैसे निर्माण इसकी जीवंत मिसालें हैं।